HI/710214b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद गोरखपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710214CC-GORAKHPUR_ND_02.mp3</mp3player>|"इसलिए जब आप अपने आप को कृष्ण भावनामृत में रखते हैं, तो आप आध्यात्मिक ऊर्जा में रहते हैं, और जब आप कृष्ण भावनामृत के बिना होते हैं, तो आप भौतिक ऊर्जा में रहते हैं। जब आप भौतिक ऊर्जा में रहते हैं, तो आपका गुणवत्ता रौशनमयी होता है, क्योंकि आप अग्नि हैं, कृष्ण के अहम हिस्सा हैं, जो लगभग बुझ गया है। इसलिए हम कृष्ण को भूल जाते हैं। कृष्ण के साथ हमारा संबंध व्यावहारिक रूप से समाप्त हो गया है। और फिर, आग, चिंगारी, अगर वह सूखी घास पर गिरता है, तो धीरे-धीरे, घास प्रज्वलित हो जाता है। इसलिए भले ही हम... क्योंकि इस भौतिक दुनिया में भौतिक प्रकृति के तीन गुण हैं। यदि हम अच्छाई की गुणवत्ता से जुड़े हैं, तो हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा फिर से प्रज्वलित अग्नि बन जाती है।"|Vanisource:710214 - Lecture CC Madhya 06.151-154 - Gorakhpur|710214 - प्रवचन CC Madhya 06.151-154 - गोरखपुर}}
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Latest revision as of 03:15, 13 October 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जब आप स्वयं को कृष्ण भावनामृत में रखते हैं, तो आप आध्यात्मिक ऊर्जा में रहते हैं, और जब आप कृष्ण भावनामृत के बिना होते हैं, तो आप भौतिक ऊर्जा में रहते हैं। जब आप भौतिक ऊर्जा में रहते हैं, तो भी आपकी गुणवत्ता प्रकाशमयी होती है, क्योंकि आप अग्नि हैं, कृष्ण के अहम भाग हैं, जो लगभग बुझ गई है। इसलिए हम कृष्ण को भूल जाते हैं। कृष्ण के साथ हमारा संबंध व्यावहारिक रूप से समाप्त हो गया है। तथा, आग, चिंगारी, यदि वह सूखी घास पर गिरती है, तो धीरे-धीरे, घास प्रज्वलित हो जाती है। इसलिए हम इस भौतिक संसार में प्रकृति के तीन गुणों से प्रभावित हैं। यदि हम अच्छाई की गुणवत्ता से जुड़े हैं, तो हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा फिर से प्रज्वलित अग्नि बन जाती है।"
710214 - प्रवचन चै.च. मद्य ६.१५१-१५४ - गोरखपुर