HI/710214d प्रवचन - श्रील प्रभुपाद गोरखपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७१ Category:HI/अम...") |
No edit summary |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - गोरखपुर]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - गोरखपुर]] | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710214SB-GORAKHPUR_ND_01.mp3</mp3player>|" | <!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/710214c प्रवचन - श्रील प्रभुपाद गोरखपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710214c|HI/710214e बातचीत - श्रील प्रभुपाद गोरखपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710214e}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710214SB-GORAKHPUR_ND_01.mp3</mp3player>|"कृष्ण-तत्व को समझना बहुत कठिन है, दुर्बोधम। दुर्बोधम का अर्थ है, समझना। यह बहुत ही कठिन है। इसलिए आपको महाजनों से जुड़ना चाहिए। लोग उन्हें समझने का प्रयास करते हैं जिन्हे समझना उनके स्वयं के प्रयास से असंभव है। यह बहुत बड़ी त्रुटि है। इसलिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, दुर्बोधम। धर्म क्या है और ईश्वर क्या है, यह समझना बहुत ही कठिन है। वैदिक आदेश के अनुसार इन्हे समझने के लिए हमें प्रामाणिक गुरु के पास जाना चाहिए।"|Vanisource:710214 - Lecture SB 06.03.20-23 - Gorakhpur|710214 - प्रवचन श्री.भा. ६.३.२०-२३ - गोरखपुर}} |
Latest revision as of 03:36, 14 October 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"कृष्ण-तत्व को समझना बहुत कठिन है, दुर्बोधम। दुर्बोधम का अर्थ है, समझना। यह बहुत ही कठिन है। इसलिए आपको महाजनों से जुड़ना चाहिए। लोग उन्हें समझने का प्रयास करते हैं जिन्हे समझना उनके स्वयं के प्रयास से असंभव है। यह बहुत बड़ी त्रुटि है। इसलिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, दुर्बोधम। धर्म क्या है और ईश्वर क्या है, यह समझना बहुत ही कठिन है। वैदिक आदेश के अनुसार इन्हे समझने के लिए हमें प्रामाणिक गुरु के पास जाना चाहिए।" |
710214 - प्रवचन श्री.भा. ६.३.२०-२३ - गोरखपुर |