HI/710216b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद गोरखपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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मान लीजिये की कृष्ण यहाँ है....जैसे हम श्रीविग्रह को आदरपूर्वक प्रणाम करते हैl उसी तरह श्रीविग्रह अर्च -अवतार है ... यह श्रीविग्रह जिसकी आप पूजा अर्च अवतार की तरह कर रहे है ,अर्च का अर्थ है पूजनीय l  क्योंकि   हम कृष्ण का दर्शन अपनी वर्तमान आँखों से नहीं कर सकते , भौतिक आँखों से ,इसलिए कृष्ण अपनी कृपा से हमारे समक्ष ऐसे रूप में प्रकट होते है की हम उनका दर्शन कर सकते हैl यह कृष्ण की कृपा है ऐसा नहीं कि कृष्ण ,उनके श्रीविग्रह से भिन्न है l यह गलती है lजो लोग कृष्ण की शक्ति को नहीं समझते, वे कहते है की यह मूर्ति है और अन्ततः "मूर्ति- पूजा" है l यह मूर्ति- पूजा नहीं हैl   
मान लीजिये कि कृष्ण यहाँ है.... जैसे हम श्रीविग्रह को आदरपूर्वक प्रणाम करते हैl उसी तरह श्रीविग्रह अर्च-अवतार है ... यह श्रीविग्रह जिसकी आप पूजा अर्च अवतार की तरह कर रहे है, अर्च का अर्थ है पूजनीयl क्योंकि हम कृष्ण का दर्शन अपनी वर्तमान आँखों से नहीं कर सकते, भौतिक आँखों से, इसलिए कृष्ण अपनी कृपा से हमारे समक्ष ऐसे रूप में प्रकट होते है कि हम उनका दर्शन कर सकते हैl यह कृष्ण की कृपा है ऐसा नहीं कि कृष्ण, उनके श्रीविग्रह से भिन्न हैl यह गलती हैl जो लोग कृष्ण की शक्ति को नहीं समझते, वे कहते है कि यह मूर्ति है और अन्ततः "मूर्ति- पूजा" हैl यह मूर्ति- पूजा नहीं हैl   


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Latest revision as of 15:18, 10 April 2023

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी

मान लीजिये कि कृष्ण यहाँ है.... जैसे हम श्रीविग्रह को आदरपूर्वक प्रणाम करते हैl उसी तरह श्रीविग्रह अर्च-अवतार है ... यह श्रीविग्रह जिसकी आप पूजा अर्च अवतार की तरह कर रहे है, अर्च का अर्थ है पूजनीयl क्योंकि हम कृष्ण का दर्शन अपनी वर्तमान आँखों से नहीं कर सकते, भौतिक आँखों से, इसलिए कृष्ण अपनी कृपा से हमारे समक्ष ऐसे रूप में प्रकट होते है कि हम उनका दर्शन कर सकते हैl यह कृष्ण की कृपा है ऐसा नहीं कि कृष्ण, उनके श्रीविग्रह से भिन्न हैl यह गलती हैl जो लोग कृष्ण की शक्ति को नहीं समझते, वे कहते है कि यह मूर्ति है और अन्ततः "मूर्ति- पूजा" हैl यह मूर्ति- पूजा नहीं हैl

७१०२१६- प्रवचन- कृष्ण-निकेतन, गोरखपुर