HI/710217d प्रवचन - श्रील प्रभुपाद गोरखपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710217CC-GORAKHPUR_ND_01.mp3</mp3player>|"यह | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710217CC-GORAKHPUR_ND_01.mp3</mp3player>|"यह केवल साक्षात्कार की प्रक्रिया है कि कोई व्यक्ति परम सत्य का साक्षात्कार निराकार की तरह कर रहा है और कोई व्यक्ति परम सत्य का साक्षात्कार सर्वव्यापी परमात्मा, अंतर्यामी की तरह कर रहा है, और कुछ लोग परम सत्य को परम पुरुषोत्तम भगवान, कृष्ण की तरह साक्षात्कार कर रहे हैं। लेकिन वे सब अद्वय ज्ञान है, अभिन्न, एक जैसे है। यह तो हमारी अनुभूति की शक्ति ही है जिससे अंतर पड़ता है। विषय तो समान है। यही श्रीमद-भागवतम में कहा गया है।"|Vanisource:710217 - Lecture CC Adi 07.119 - Gorakhpur|७१०२१७ - प्रवचन चै.च. आदि ०७.११९ - गोरखपुर}} |
Latest revision as of 15:58, 16 April 2023
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यह केवल साक्षात्कार की प्रक्रिया है कि कोई व्यक्ति परम सत्य का साक्षात्कार निराकार की तरह कर रहा है और कोई व्यक्ति परम सत्य का साक्षात्कार सर्वव्यापी परमात्मा, अंतर्यामी की तरह कर रहा है, और कुछ लोग परम सत्य को परम पुरुषोत्तम भगवान, कृष्ण की तरह साक्षात्कार कर रहे हैं। लेकिन वे सब अद्वय ज्ञान है, अभिन्न, एक जैसे है। यह तो हमारी अनुभूति की शक्ति ही है जिससे अंतर पड़ता है। विषय तो समान है। यही श्रीमद-भागवतम में कहा गया है।" |
७१०२१७ - प्रवचन चै.च. आदि ०७.११९ - गोरखपुर |