HI/710220 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद गोरखपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"यह ध्वनि...ठीक जैसे कि जब कीर्तन चल रहा है, एक जानवर खड़ा है। उसे यह समझ नहीं आता कि उस कीर्तन का क्या अर्थ है, लेकिन वह ध्वनि उसे शुद्ध कर देगी। इस कमरे के भीतर कई कीड़े हैं, कई छोटे जीव, चीटियां, मच्छर, मक्खियां। केवल इस पवित्र नाम को सुनकर, दिव्य शब्द-धवनि, वे शुद्ध हो जायेंगे। पावित्र-गाथा। जैसे ही आप कृष्ण का गोपियों के साथ व्यवहार की चर्चा करते हो...क्योंकि कृष्ण-लीला का मतलब दूसरा पक्ष भी अवशय होगा। और वह दूसरा पक्ष क्या है? वह भक्त है।"
७१०२२० - प्रवचन श्री.भा. ०६.०३.२७-२८ - गोरखपुर