HI/710326 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - बॉम्बे]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - बॉम्बे]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710326LE-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"द्वंद्वों की दुनिया में, भद्राभ्दर, "यह अच्छा है, यह बुरा है। यह अच्छा है, यह अच्छा नहीं है," वे केवल मानसिक अटकलें हैं, क्योंकि इस दुनिया में कुछ भी अच्छा नहीं है। सब कुछ बुरा है, क्योंकि यह शाश्वत नहीं है। इसलिए शंकराचार्य ने कहा, जगन मिथ्या, ब्रह्म सत्य। यह एक तथ्य है। ये, कुछ भी, इस दुनिया की विविधता: अस्थायी। यह सही शब्द है। यह मिथ्या नहीं है, यह अस्थायी तथ्य है।  वैष्णव दार्शनिक का कहना है कि यह दुनिया मिथ्या नहीं है, बल्कि अस्थायी है, अनित्य। अनित्य संसारे मोहो जनमिया। श्रीला भक्तिविनोद कहते हैं जड़-विद्या सब मायार वैभव: "भौतिक विज्ञान की उन्नति माया का भ्रम बढ़ा रही है।" हम पहले से ही ब्र्ह्मित हैं, और यदि आप भ्रम को और अधिक बढ़ाते चले जाते हैं, तो हम अधिक से अधिक उलझते जाते हैं। यही प्रकृति है।”|Vanisource:710326 - Lecture Pandal at Cross Maidan - Bombay|710326 - प्रवचन Pandal at Cross Maidan - बॉम्बे}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/710324 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710324|HI/710328 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710328}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710326LE-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"द्वंद्वों की दुनिया में, भद्राअभ्द्र, "यह अच्छा है, यह बुरा है। यह अच्छा है, यह अच्छा नहीं है," वे केवल मानसिक अटकलें हैं, क्योंकि इस दुनिया में कुछ भी अच्छा नहीं है। सब कुछ बुरा है, क्योंकि यह शाश्वत नहीं है। इसलिए शंकराचार्य ने कहा, जगन मिथ्या, ब्रह्म सत्य। यह एक तथ्य है। ये, कुछ भी, इस दुनिया की विविधता: अस्थायी। यह सही शब्द है। यह मिथ्या नहीं है, यह अस्थायी तथ्य है।  वैष्णव दार्शनिक का कहना है कि यह दुनिया मिथ्या नहीं है, बल्कि अस्थायी है, अनित्य। अनित्य संसारे मोहो जनमिया। श्रीला भक्तिविनोद कहते हैं जड़-विद्या सब मायार वैभव: "भौतिक विज्ञान की उन्नति माया का भ्रम बढ़ा रही है।" हम पहले से ही ब्र्ह्मित हैं, और यदि आप भ्रम को और अधिक बढ़ाते चले जाते हैं, तो हम अधिक से अधिक उलझते जाते हैं। यही प्रकृति है।”|Vanisource:710326 - Lecture Pandal at Cross Maidan - Bombay|710326 - प्रवचन क्रॉस मैदान पर पंडाल - बॉम्बे}}

Latest revision as of 23:08, 24 July 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"द्वंद्वों की दुनिया में, भद्राअभ्द्र, "यह अच्छा है, यह बुरा है। यह अच्छा है, यह अच्छा नहीं है," वे केवल मानसिक अटकलें हैं, क्योंकि इस दुनिया में कुछ भी अच्छा नहीं है। सब कुछ बुरा है, क्योंकि यह शाश्वत नहीं है। इसलिए शंकराचार्य ने कहा, जगन मिथ्या, ब्रह्म सत्य। यह एक तथ्य है। ये, कुछ भी, इस दुनिया की विविधता: अस्थायी। यह सही शब्द है। यह मिथ्या नहीं है, यह अस्थायी तथ्य है। वैष्णव दार्शनिक का कहना है कि यह दुनिया मिथ्या नहीं है, बल्कि अस्थायी है, अनित्य। अनित्य संसारे मोहो जनमिया। श्रीला भक्तिविनोद कहते हैं जड़-विद्या सब मायार वैभव: "भौतिक विज्ञान की उन्नति माया का भ्रम बढ़ा रही है।" हम पहले से ही ब्र्ह्मित हैं, और यदि आप भ्रम को और अधिक बढ़ाते चले जाते हैं, तो हम अधिक से अधिक उलझते जाते हैं। यही प्रकृति है।”
710326 - प्रवचन क्रॉस मैदान पर पंडाल - बॉम्बे