HI/710328 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710328BG-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"तो जो लोग इस भक्ति-योग, कृष्ण चेतना का अभ्यास कर रहे हैं, उनकी पहली स्थिति यह है कि वे कृष्ण से आसक्त हैं। मयि आसक्ताः मनः । आसक्ति का अर्थ है आत्मीयता। हमें कृष्ण के लिए अपनी आत्मीयता बढ़ानी है। इसके लिए प्रक्रिया हैं , संस्तुत प्रक्रिया। यदि हम उस प्रक्रिया को अपनाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से हम कृष्ण भावनामृत हो जाएंगे, और क्रमशः हम समझ जाएंगे कि कृष्ण क्या हैं। "|Vanisource:710328 - Lecture BG 07.01-2 - Bombay|७१०३२८  - प्रवचन भ. ग. ०७.०१-०२  - बॉम्बे}}
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710328BG-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"जो लोग इस भक्ति-योग, कृष्ण चेतना का अभ्यास कर रहे हैं, उनकी पहली स्थिति यह है कि वे कृष्ण से आसक्त हैं। मयि आसक्ताः मनः। आसक्ति का अर्थ है आत्मीयता। हमें कृष्ण के लिए अपनी आत्मीयता बढ़ानी है। इसके लिए प्रक्रिया हैं, संस्तुत प्रक्रिया। यदि हम उस प्रक्रिया को अपनाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से हम कृष्ण भावनामृत हो जाएंगे, और क्रमशः हम समझ जाएंगे कि कृष्ण क्या हैं।"|Vanisource:710328 - Lecture BG 07.01-2 - Bombay|७१०३२८  - प्रवचन भ. ग. ०७.०१-०२  - बॉम्बे}}

Latest revision as of 15:26, 1 May 2023

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जो लोग इस भक्ति-योग, कृष्ण चेतना का अभ्यास कर रहे हैं, उनकी पहली स्थिति यह है कि वे कृष्ण से आसक्त हैं। मयि आसक्ताः मनः। आसक्ति का अर्थ है आत्मीयता। हमें कृष्ण के लिए अपनी आत्मीयता बढ़ानी है। इसके लिए प्रक्रिया हैं, संस्तुत प्रक्रिया। यदि हम उस प्रक्रिया को अपनाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से हम कृष्ण भावनामृत हो जाएंगे, और क्रमशः हम समझ जाएंगे कि कृष्ण क्या हैं।"
७१०३२८ - प्रवचन भ. ग. ०७.०१-०२ - बॉम्बे