HI/710328 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो जो लोग इस भक्ति-योग, कृष्ण चेतना का अभ्यास कर रहे हैं, उनकी पहली स्थिति यह है कि वे कृष्ण से आसक्त हैं। मयि आसक्ताः मनः । आसक्ति का अर्थ है आत्मीयता। हमें कृष्ण के लिए अपनी आत्मीयता बढ़ानी है। इसके लिए प्रक्रिया हैं , संस्तुत प्रक्रिया। यदि हम उस प्रक्रिया को अपनाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से हम कृष्ण भावनामृत हो जाएंगे, और क्रमशः हम समझ जाएंगे कि कृष्ण क्या हैं। "
७१०३२८ - प्रवचन भ. ग. ०७.०१-०२ - बॉम्बे