HI/710401 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - बॉम्बे]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - बॉम्बे]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710401BG-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"तो कृष्ण हर जगह मौजूद है, क्योंकि सब कुछ उनपर आश्रित है, उनकी शक्ति पर। ठीक जैसे कि एक बड़े कारखाने में मालिक कारखाने से बाहर हो सकता है, लेकिन हर मज़दूर इस बात से वाकिफ है कि" यह कारखाना अमुक व्यक्ति का है।" जैसे की मजदूरों के द्वारा हमेशा कारखाने के मालिक की चेतना संभव है, उसी तरह, हर किसी के द्वारा हर कार्यकलाप में कृष्ण चेतना संभव है। यही वह दर्शन है जिसे हम पूरी दुनिया में प्रचार करने की कोशिश कर रहे हैं।"|Vanisource:710401 - Lecture BG 07.07 - Bombay|७१०४०१ - प्रवचन भ.ग. ०७.०७ - बॉम्बे}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/710331 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710331|HI/710405 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710405}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710401BG-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"तो कृष्ण हर स्थान पर उपस्थित हैं, क्योंकि सब कुछ उनपर, उनकी शक्ति पर आश्रित हैं। ठीक जैसे कि एक बड़े कारखाने में मालिक कारखाने से बाहर हो सकता है, परंतु हर मज़दूर इस बात से परिचित है कि" यह कारखाना अमुक व्यक्ति का है।" जिस प्रकार मजदूरों के द्वारा सदैव कारखाने के मालिक की उपस्थिति उनकी चेतना में स्थित है, उसी प्रकार, हर किसी के द्वारा हर कार्यकलाप में कृष्णभावनामृत स्थित है। यह ही वह दर्शन है जिसका प्रचार हम पूरी दुनिया में करने का प्रयास कर रहे हैं।"|Vanisource:710401 - Lecture BG 07.07 - Bombay|७१०४०१ - प्रवचन भ.ग. ०७.०७ - बॉम्बे}}

Revision as of 17:09, 21 October 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो कृष्ण हर स्थान पर उपस्थित हैं, क्योंकि सब कुछ उनपर, उनकी शक्ति पर आश्रित हैं। ठीक जैसे कि एक बड़े कारखाने में मालिक कारखाने से बाहर हो सकता है, परंतु हर मज़दूर इस बात से परिचित है कि" यह कारखाना अमुक व्यक्ति का है।" जिस प्रकार मजदूरों के द्वारा सदैव कारखाने के मालिक की उपस्थिति उनकी चेतना में स्थित है, उसी प्रकार, हर किसी के द्वारा हर कार्यकलाप में कृष्णभावनामृत स्थित है। यह ही वह दर्शन है जिसका प्रचार हम पूरी दुनिया में करने का प्रयास कर रहे हैं।"
७१०४०१ - प्रवचन भ.ग. ०७.०७ - बॉम्बे