HI/710626b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद पेरिस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
 
(One intermediate revision by the same user not shown)
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - पेरिस]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - पेरिस]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/full/1971/710626SP-PARIS_ND_01.mp3</mp3player>|"तो यह हर मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपनी संवैधानिक स्थिति समझे , भगवान के साथ अपने संबंध और, संबंध को समझकर , तदनुसार कार्य करे, और फिर हमारा जीवन सफल हो जायेगा । यह मानव जीवन इसी उद्देश्य के लिए है।" हम इस बिंदु पर चूक जाते है ।  जब तक हम जी रहे हैं, हम कभी-कभी चुनौती देते हैं कि "कोई भगवान नहीं है," "मैं भगवान हूँ," या कोई कहता है, "मैं भगवान की परवाह नहीं करता।" लेकिन वास्तव में यह चुनौती हमें नहीं बचाएगी। भगवान है। हम हर पल में भगवान को देख सकते हैं। लेकिन अगर हम भगवान को देखने से इनकार करते हैं, तो भगवान क्रूर मृत्यु के रूप में हमारे सामने उपस्थित होंगे । "|Vanisource:710626 - Lecture at Olympia Theater - Paris|७१०६२६  - प्रवचन -ओलंपिया थिएटर - पेरिस}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/710626 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद पेरिस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710626|HI/710627 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710627}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/full/1971/710626SP-PARIS_ND_01.mp3</mp3player>|"यह हर मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपनी संवैधानिक स्थिति समझे, भगवान के साथ अपने संबंध समझे और, संबंध को समझकर, तदनुसार कार्य करे, तथा फिर हमारा जीवन सफल हो जायेगा। यह मानव जीवन इसी उद्देश्य के लिए है। हम इस बिंदु पर चूक जाते है। जब तक हम जी रहे हैं, हम कभी-कभी चुनौती देते हैं कि "कोई भगवान नहीं है," "मैं भगवान हूँ," या कोई कहता है, "मैं भगवान की परवाह नहीं करता।" परंतु वास्तव में यह चुनौती हमें नहीं बचाएगी। भगवान है। हम हर क्षण भगवान को देख सकते हैं। परंतु यदि हम भगवान को देखने से इनकार करते हैं, तो भगवान क्रूर मृत्यु के रूप में हमारे सामने उपस्थित होंगे। "|Vanisource:710626 - Lecture at Olympia Theater - Paris|७१०६२६  - प्रवचन -ओलंपिया थिएटर - पेरिस}}

Latest revision as of 15:59, 20 May 2023

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"यह हर मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपनी संवैधानिक स्थिति समझे, भगवान के साथ अपने संबंध समझे और, संबंध को समझकर, तदनुसार कार्य करे, तथा फिर हमारा जीवन सफल हो जायेगा। यह मानव जीवन इसी उद्देश्य के लिए है। हम इस बिंदु पर चूक जाते है। जब तक हम जी रहे हैं, हम कभी-कभी चुनौती देते हैं कि "कोई भगवान नहीं है," "मैं भगवान हूँ," या कोई कहता है, "मैं भगवान की परवाह नहीं करता।" परंतु वास्तव में यह चुनौती हमें नहीं बचाएगी। भगवान है। हम हर क्षण भगवान को देख सकते हैं। परंतु यदि हम भगवान को देखने से इनकार करते हैं, तो भगवान क्रूर मृत्यु के रूप में हमारे सामने उपस्थित होंगे। "
७१०६२६ - प्रवचन -ओलंपिया थिएटर - पेरिस