HI/710627 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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Latest revision as of 06:08, 9 February 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवद गीता में कहा गया है, सर्वस्य चाहम ह्रदि सन्निविष्टः: 'मैं हर किसी के ह्रदय में स्तिथ हूं।' मत्तः स्मृतिर ग्नानं अपोहनम च: (भ.गी. १५.१५) 'मैं हर किसी को बुद्धिमत्ता दे रहा हूँ साथ ही साथ मैं हर किसी से बुद्धिमत्ता को ले ले रहा हूँ।' यह दोहरा काम परमात्मा द्वारा किया जा रहा है। एक तरफ वह स्वयं को महसूस करने में मदद कर रहा है, भगवान को कैसे महसूस किया जाय, और दूसरी तरफ वह भगवान को भूलने में भी मदद कर रहा है। यह कैसा है कि परमार्थ के रूप में ईश्वरत्व का सर्वोच्च व्यक्तित्व, यह दोहरा काम कर रहा है? बोध यह है कि यदि हम ईश्वर को भूलना चाहते हैं, तो ईश्वर हमें इस तरह से मदद करेगा कि हम आगे के हर जीवन में ईश्वर को भूल जाएंगे। लेकिन अगर हम ईश्वर के साथ अपने सम्बन्ध को पुनः स्थापित करना चाहते हैं, तो भीतर से वह हमारी हर तरह से मदद करेगा। जीवन का यह मानवीय रूप ईश्वर को अनुभव करने का एक मौका है।"
710627 - प्रवचन २ उत्सव रथ-यात्रा - सैन फ्रांसिस्को