HI/710627b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७१ Category:HI/अम...") |
No edit summary |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - सैन फ्रांसिस्को]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - सैन फ्रांसिस्को]] | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710627RY-SAN_FRANCISCO_ND_01.mp3</mp3player>|" | <!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/710627 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710627|HI/710628 बातचीत - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710628}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710627RY-SAN_FRANCISCO_ND_01.mp3</mp3player>|"यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन एक प्रयास है लोगों को यह सिखाने का कि वे भगवान, कृष्ण को कैसे देखें। यदि हम अभ्यास करते हैं तो कृष्ण को देख सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कृष्ण कहते हैं, 'रसो हम अप्सु कौन्तेय'(भ.गी ०७.०८)। कृष्ण कहते हैं, "मैं पानी का स्वाद हूं।" हम में से हर एक, प्रतिदिन पानी पीते है, न केवल एक, दो या तीन बार बल्कि उससे अधिक। तो जैसे ही हम पानी पीते हैं, यदि हम सोचते हैं कि पानी का स्वाद कृष्ण हैं, तो हम तुरंत कृष्ण भावना में आ जाते हैं। कृष्ण भावना जागृत करना बहुत कठिन कार्य नहीं है। बस हमें इसका अभ्यास करना होगा।"|Vanisource:710627 - Lecture 1 Festival Ratha-yatra - San Francisco|710627b - प्रवचन १ रथ-यात्रा उत्सव - सैन फ्रांसिस्को}} |
Latest revision as of 03:44, 30 October 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन एक प्रयास है लोगों को यह सिखाने का कि वे भगवान, कृष्ण को कैसे देखें। यदि हम अभ्यास करते हैं तो कृष्ण को देख सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कृष्ण कहते हैं, 'रसो हम अप्सु कौन्तेय'(भ.गी ०७.०८)। कृष्ण कहते हैं, "मैं पानी का स्वाद हूं।" हम में से हर एक, प्रतिदिन पानी पीते है, न केवल एक, दो या तीन बार बल्कि उससे अधिक। तो जैसे ही हम पानी पीते हैं, यदि हम सोचते हैं कि पानी का स्वाद कृष्ण हैं, तो हम तुरंत कृष्ण भावना में आ जाते हैं। कृष्ण भावना जागृत करना बहुत कठिन कार्य नहीं है। बस हमें इसका अभ्यास करना होगा।" |
710627b - प्रवचन १ रथ-यात्रा उत्सव - सैन फ्रांसिस्को |