HI/710810 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लंडन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 23:12, 24 July 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"यह शिष्टाचार है, कुछ भी बोलने से पूर्व, शिष्य को सबसे पहले आध्यात्मिक गुरु को सम्मान अर्पण करना चाहिए। इसलिए आध्यात्मिक गुरु को सम्मान देने का अर्थ है उनकी कुछ गतिविधियों को याद करना। उनकी कुछ गतिविधियां। जैसे आप अपने आध्यात्मिक गुरु का सम्मान करते हैं, नमस्ते सारस्वते देवे गौरा वाणी प्रचारिणे। यह आपके आध्यात्मिक गुरु की गतिविधि है, कि वे भगवान चैतन्य महाप्रभु के संदेश का प्रचार कर रहे हैं और वे सरस्वती ठाकुरा के शिष्य हैं। नमस्ते सारस्वते। आपको सारस्वते उच्चारण करना है, सरस्वती नहीं। सरस्वती..., मेरे आध्यात्मिक गुरु हैं। तो उनके शिष्य सारस्वते हैं। सारस्वते देवे गौरा वाणी प्रचारिणे। ये गतिविधियाँ हैं। आपके आध्यात्मिक गुरु की गतिविधियाँ क्या हैं? वह बस भगवान चैतन्य के संदेश का प्रचार कर रहे हैं। यही उनका कार्य है।”
710810 - प्रवचन श्री भा. ०१.०१.०२ - लंडन