HI/710826 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लंडन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"आप किसी भी प्रकार के धर्म को स्वीकार कर सकते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। भले ही आप हिंदू या मुसल्मान या ईसाई हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। परीक्षा तो यह है कि क्या आपने अहैतुकी ..., भगवान के लिए अहैतुकी प्रेम विकसित किया है, और क्या उस प्रेम संबंध का निष्पादन बिना किसी भौतिक कारण की रुकावट के हो रहा है। यही धर्म की परीक्षा है। श्रीमद-भागवतम, में कितनी अच्छी, परिभाषा है ...

स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे । अहैतुक्यप्रतिहता ययात्मा सुप्रसीदति ॥ (श्री.भा. १.०२.०६) अगर आप भगवान के प्रति इस तरह के प्रेम का विकास कर सकते हैं, जो बिना किसी हेतु के, बिना किसी रुकावट के, बिना किसी भौतिक कारण की रुकावट के हैं, तो आप सुप्रसीदति महसूस करेंगे, पूर्ण संतुष्टि-और कोई चिंता नहीं, और कोई असंतोष नहीं। आप पूरी दुनिया को आनंद से भरा महसूस करेंगे। ”

७१०८२६ - प्रवचन श्री.भा. १.०२.०६ - लंडन