HI/720119 बातचीत - श्रील प्रभुपाद जयपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - update old navigation bars (prev/next) to reflect new neighboring items)
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७२]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७२]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - जयपुर]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - जयपुर]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/720119R1-JAIPUR_ND_01.mp3</mp3player>|"अगर वहाँ बस कोशिश है कि कैसे सर्वोच्च प्रभु का महिमामंडन किया जाए। यह एक तथ्य है। यह कोई मायने नहीं रखता है कि यह सही भाषा या गलत भाषा में लिखा गया है। कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर इस विचार का लक्ष्य है परमपिता परमात्मा का गुणगान करें, फिर नामान्यनन्तस्य यशोऽङ्कितानि यत्
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
श‍ृण्वन्ति गायन्ति गृणन्ति साधव:
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/720118 बातचीत - श्रील प्रभुपाद जयपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|720118|HI/720218 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद विशाखापट्नम में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|720218}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/720119R1-JAIPUR_ND_01.mp3</mp3player>|"अगर वहाँ बस कोशिश है कि कैसे सर्वोच्च प्रभु का महिमामंडन किया जाए। यह एक तथ्य है। यह कोई मायने नहीं रखता है कि यह सही भाषा या गलत भाषा में लिखा गया है। कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर इस विचार का लक्ष्य है परमपिता परमात्मा का गुणगान करें,     फिर नामान्यनन्तस्य यशोऽङ्कितानि यत् श‍ृण्वन्ति गायन्ति गृणन्ति साधव:
तब जो वास्तव में साधु हैं, इन सभी दोषों के बावजूद, क्योंकि एकमात्र प्रयास प्रभु की महिमा मंडन करना है,जो लोग साधु हैं, भक्त हैं, वे इसे सुनते हैं। श‍ृण्वन्ति गायन्ति गृणन्ति।"|Vanisource:720119 - Conversation - Jaipur|720119 - बातचीत - जयपुर}}
तब जो वास्तव में साधु हैं, इन सभी दोषों के बावजूद, क्योंकि एकमात्र प्रयास प्रभु की महिमा मंडन करना है,जो लोग साधु हैं, भक्त हैं, वे इसे सुनते हैं। श‍ृण्वन्ति गायन्ति गृणन्ति।"|Vanisource:720119 - Conversation - Jaipur|720119 - बातचीत - जयपुर}}

Latest revision as of 23:26, 4 July 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"अगर वहाँ बस कोशिश है कि कैसे सर्वोच्च प्रभु का महिमामंडन किया जाए। यह एक तथ्य है। यह कोई मायने नहीं रखता है कि यह सही भाषा या गलत भाषा में लिखा गया है। कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर इस विचार का लक्ष्य है परमपिता परमात्मा का गुणगान करें, फिर नामान्यनन्तस्य यशोऽङ्कितानि यत् श‍ृण्वन्ति गायन्ति गृणन्ति साधव:

तब जो वास्तव में साधु हैं, इन सभी दोषों के बावजूद, क्योंकि एकमात्र प्रयास प्रभु की महिमा मंडन करना है,जो लोग साधु हैं, भक्त हैं, वे इसे सुनते हैं। श‍ृण्वन्ति गायन्ति गृणन्ति।"

720119 - बातचीत - जयपुर