HI/720503 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद टोक्यो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 01:48, 14 November 2021 by Meghna (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"पिछले अनुभव के कारण हमें नवीन भक्त में कुछ बुरा व्यवहार नज़र आता है, इसलिए हमें उसे अभक्त के रूप में नहीं लेना चाहिए। साधुर एव स मन्तव्यः (भ.गी. ९.३०)। यदि वह कृष्ण भावनामृत से जुड़ जाता है , तो वह साधु है। तथा जो बुरी आदतें अभी नज़र आ रही हैं, वह लुप्त हो जाएंगी। वह सभी लुप्त हो जाएंगी। इसलिए हमें अवसर देना होगा। क्योंकि यदि हमें एक भक्त में कुछ बुरी आदतें नज़र आती हैं, तो हमें उसे अस्वीकार नहीं करना चाहिए। इसलिए हमें उसे एक और अवसर देना चाहिए। हमें एक और अवसर देना ही चाहिए, क्योंकि उसने सही चीजें ग्रहण की हैं, परंतु पिछले व्यवहार के कारण वह पुनः माया के चंगुल में जाता हुआ दिखाई दे रहा है। इसलिए हमें उसे अस्वीकार नहीं करना चाहिए, अपितु हमें मौका देना चाहिए। एक व्यक्ति को उच्च स्तर पर आने के लिए थोड़ा ज्यादा समय लग सकता है, परंतु हमें उसे अवसर देना चाहिए। यदि वह कृष्ण भावनामृत से जुड़ा रहता है, तो शिघ्र ही यह सभी दोष लुप्त हो जाएंगे। क्षिप्रं भवति धर्मात्मा (भ.गी. ९.३१)। पूर्णरूप से वह धर्मात्मा, महात्मा होगा।"
720503 - प्रवचन श्री.भा. ०२.०९.१३ - टोक्यो