HI/720715 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लंडन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 23:11, 16 August 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - update old navigation bars (prev/next) to reflect new neighboring items)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
" तो हमारा आदर्श है हम माया से युद्ध कर रहे हैं, तो यह युद्ध माया पर विजयी होगा जब हम देखें कि हम इन चार प्रक्रियाओं से व्यथित नहीं होते: आहार, निद्रा, मैथुन और प्रतिरक्षण। यही कसौटी है। किसी को भी किसी से प्रमाणपत्र नहीं लेना है कि किस प्रकार वह आध्यात्मिक उन्नति कर रहा है। वह स्वयं को जाँच सकता है:" किस सीमा तक मैंने इन चार चीज़ों पर विजय करी है: आहार, निद्रा, मैथुन और प्रतिरक्षण।" यही सब कुछ है। तो यह नहीं अपेक्षित है कि भोजन नहीं करो, नींद मत करो..., किन्तु इसे कम करो, कम से कम इसे नियंत्रित करो। प्रयत्न करो। यह आत्मसंयम कहलाता है, तपस्या। मैं सोना चाहता हूँ, किन्तु फिर भी मैं इसे नियंत्रित अवश्य करूँगा, मैं भोजन करना चाहता हूँ, किन्तु मुझे इसे नियंत्रित करना अनिवार्य है। मुझे इन्द्रियभोग चाहिए, इसलिए इसको मुझे नियंत्रित करना है। वही पुरातन वैदिक संस्कृति है।"
720715 - प्रवचन SB 01.01.05 - लंडन