HI/720908 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद पिट्सबर्ग में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 06:04, 5 February 2021 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - update old navigation bars (prev/next) to reflect new neighboring items)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जीवन के ८,४००,००० विभिन्न रूपों में से, हम सभ्य मनुष्य जाती बहुत कम हैं। लेकिन अन्य, उनकी संख्या बहुत अधिक है। ठीक उसी तरह जैसे पानी में: जलजा नव लक्षाणि (पद्म पुराण)। पानी के भीतर जीवन की ९००,००० प्रजातियां हैं। स्थावरा लक्षा विंशति: और वनस्पति राज्य में, पौधों और पेड़, जीवन के २,०००,००० विभिन्न रूप। जलजा नव लक्षाणि स्थावरा लक्ष विंशति, कर्मयों रूद्र संख्याया: और कीड़े, वे १,१००,००० अलग-अलग प्रजातियां हैं। कर्मयों रूद्र संख्याया-पक्षिणाम दश लक्षणम: और पक्षि, वे १,०००,००० रूपों की प्रजातियां हैं। फिर जानवर, पाशवस्य त्रिंश लक्षाणि, ३,०००,००० प्रकार के जानवर, चार-पैर वाले। और चतूर लक्षाणि मानुषः, और मनुष्य जाती का ४००,००० रूप।"
720908 - प्रवचन भ.गी ०२.१३ - पिट्सबर्ग