HI/721024 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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Revision as of 04:00, 29 August 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"प्रेम करने की हमारी यह सहजप्रवृत्ति तब तक तृप्त नहीं होगी जब तक वह परम पुरुषोत्तम भगवान तक नहीं पहुँच जाती। यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है। हम प्रेम करते हैं। प्रेम करने की सहप्रवृत्ति (हमारे भीतर ) है। हमारे पास परिवार नहीं होते तब भी, कभी कभी हम पालतू पशु रखते हैं, बिल्ली और कुत्ते, उनसे प्यार करने के लिए। तो हम जो हैं, स्वभावतः हम किसी और को प्रेम करते थे। तो वह और कोई कृष्ण हैं। वास्तव में, हम कृष्ण से प्रेम करना चाहते हैं, किन्तु कृष्ण की जानकारी के बिना, कृष्ण भावना के बिना, हमारी प्रेम करने की सहजप्रवृत्ति सिमित होती है, किसी दायरे के भीतर। इसलिए हम संतुष्ट नहीं हैं। नित्य सिद्ध कृष्ण-भक्ति (Vanisource:CC Adi 22107।श्री चैतन्य चरितामृत मध्यलीला २२.१०७)। (हमारे भीतर) यह प्रेम सम्बन्ध, प्रेम व्यव्हार, नित्य विद्यमान है, कृष्ण को प्रेम करने का।"
721024 - प्रवचन NOD - वृंदावन