HI/731025 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"हमारा लक्ष्य बहुत बड़ा है, सबसे उत्तम कल्याणप्रद कार्य। दूसरे कल्याणकारी कार्य, वे व्यक्ति को गो-खर (गाय और गधे) की भांति रहने देते हैं और वायदे करते हैं सभी तरह के बड़े, बड़े वायदे। (किन्तु) नहीं, हम यह नहीं कहते। हमारा लक्ष्य है उसको प्रबुद्ध करना, की वह यह शरीर नहीं हैं, वह जीवात्मा है। वहां (शरीर में ) परमात्मा है; जीवात्मा और परमात्मा दोनों इस शरीर में रहते हैं। परमात्मा देख रहे हैं और जीवात्मा कर्म कर रहा है। उसके कर्म के अनुसार, उसे फल मिल रहा है, एक भिन्न प्रकार का शरीर। इस प्रकार, बारम्बार वह जन्म ले रहा है और बारम्बार मर रहा है। तो व्यक्ति को इस जन्म मृत्यु के पुनरावर्तन को रोकना है। वही जीवन की परिपूर्णता है। वही सिद्धि है।" |
731025 - प्रवचन BG 13.26 - बॉम्बे |