HI/740102b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 23:24, 31 August 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"इहा। इहा का अर्थ है "इच्छा।" यस्य, किसी की भी इच्छा। वह हमेशा सोचता है कि कृष्ण की सेवा कैसे करें। पूरी दुनिया की साज-सामग्री के साथ कृष्ण की सेवा कैसे करें, वह योजना बना रहा है। ऐसा व्यक्ति। ईहा यस्य हरेर दास्ये। उसका मुख्य लक्ष है कृष्ण की सेवा कैसे करें। कर्मणा मानसा वाचा। कोई व्यक्ति अपनी गतिविधियों से सेवा कर सकता है, कर्मणा; मन से, सोच कर, योजना बनाकर की अच्छी तरह से कैसे करें। मन की भी आवश्यकता है। कर्मणा मानसा वाचा। और शब्दों के द्वारा। कैसे? उपदेश। ऐसा व्यक्ति, निखिलास्व अपी अवस्थासु, जीवन की किसी भी स्थिति में वह हो सकता है... वह वृन्दावन में हो सकता है या वह नरक में हो सकता है। उसको कृष्ण के अलावा किसी भी वस्तु से कोई मतलब नहीं, किसी भी वस्तु से नहीं। जीवन-मुक्तः स उच्यते: वह हमेशा मुक्त है। यह आवश्यक है।"
740102 - प्रवचन श्री.भा. ०१.१६.०५ - लॉस एंजेलेस