HI/740115 - श्रील प्रभुपाद होनोलूलू में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"सनातन-धर्म का अर्थ है शाश्वत, सनातन धर्म। मनुष्य का धर्म एक है। इसे सनातन कहा जाता है। एक जीव को सनातन के रूप में वर्णित किया गया है। ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः (भ. गी. १५.७) भगवद गीता में आपको सनातन मिलेगा, और कृष्ण को भी ग्यारहवें अध्याय में सनातनत्वं के रूप में संबोधित किया गया है। और एक और लोक है, या आध्यात्मिक जगत, जिसे सनातन भी कहा जाता है। भगवद गीता में आप पाएंगे, परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातन: (भ. गी. ८.२०)। तो यह सनातन शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। जीव सनातन है, और ईश्वर सनातन है, और आध्यात्मिक जगत सनातन है, और वह प्रक्रिया जिसके द्वारा भगवान के साथ आपका रिश्ता पुनः स्थापित होता है और आप धाम वापस जाते हैं, भागवत धाम वापस जाते हैं, उसे सनातन-धर्म कहते हैं। सनातन-धर्म। यही भगवान के साथ हमारा शाश्वत संबंध है।"
740115 - प्रवचन श्री. भा. ०१.१६.१९ - होनोलूलू