HI/740118 - श्रील प्रभुपाद होनोलूलू में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"पांच हजार साल पहले यह श्रीमद-भागवतम लिखा गया था, कलियुग के लक्षण। अब आप देखते हैं कि इतस ततो वासना-पाना-वसह-स्नाना। अब हर जगह, दुनिया भर में, युवा लड़के और लड़कियां, कहाँ वास करेंगे, कहाँ स्नान करेंगे, कहाँ खाएँगे या कैसे . . . या कैसे मैथुन करेंगे, इसमें कोई स्थिरता नहीं है। नहीं। ये जीवन की प्रारंभिक आवश्यकताएं हैं। रहने के लिए एक अच्छी जगह होनी चाहिए। खाने के लिए पर्याप्त अच्छा भोजन होना चाहिए। निद्रा। आहार, निद्रा, मैथुन-यह भौतिक आवश्यकताएं हैं। इसलिए वैदिक सभ्यता में, इन आवश्यकताओं को एक विनियमित तरीके से निर्धारित किया गया है ताकि वह अपनी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा कर सके, साथ ही, कृष्ण भावनाभावित बन सके और धाम वापस, भगवद धाम वापस जा सके।"
740118 - प्रवचन श्री. भा. ०१.१६.२२ - होनोलूलू