HI/740206 बातचीत - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"शास्त्र कहता है कि अपने कर्मफल को बदलने की कोशिश मत करो। उस ऊर्जा का बेहतर उपयोग कृष्ण भावनामृत में अग्रसर होने के लिए करो। क्योंकि तुम भाग्य को नहीं बदल सकते। यह संभव नहीं है। तब क्या मैं अपने आर्थिक सुधार के लिए प्रयास नहीं करूंगा . . . आर्थिक स्थिति? नहीं। क्यों? मैं हूं, क्योंकि भाग्य, जो कुछ भी तुमको अपना भाग्य मिला है, वह तुम्हे मिलेगा। मैं इसे कैसे प्राप्त करूं? अब मान लीजिए कि अगर तुमको कुछ अवांछित परिस्थितियों में डाल दिया जाता है-तुम इसे नहीं चाहते हो-तुम उसे स्वीकार करने के लिए मजबूर हो। तो जैसे बिना इच्छा के तुम पर संकट की स्थिति आ जाती है, वैसे ही, सुख की स्थिति भी आ जाएगी, इसके लिए तुम्हे प्रयास करने की भी आवश्यकता नहीं है।"
740206 - वार्तालाप - वृंदावन