HI/750116 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"लेकिन पूरी तरह से अगर हम कृष्ण पर निर्भर हैं, तो चीजें चलती रहेंगी। लेकिन हमें उस तरह से निर्भर रहना होगा। उनके पास इतनी अच्छा साधन है। पहली बात यह है कि वे सभी के ह्रदय में विराजमान हैं। सर्वस्य चाहं ह्रदि सन्निविष्ट: (भ. गी. १५.१५)। तो वह संबंधित कर्तव्यों का पालन करने के लिए निर्देश दे सकते हैं-लेकिन एक और विषय है: व्यक्तिगत सोच-विचार। व्यक्तिगत जीव को मौका दिया जाता है कि वह यह मौका ले लेकिन अपनी सीमित स्वतंत्रता का दुरुपयोग न करें । मौका सभी को दिया जाता है। और कृष्ण का एक और कर्त्तव्य है: वे जीवों को दी गई सीमित स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। इसलिए जीव को स्वेच्छा से अपनी सीमित स्वतंत्रता का आत्मसमर्पण करना चाहिए।"
750116 - श्री. भा. ०३.२६.४१ - बॉम्बे