HI/750228 बातचीत - श्रील प्रभुपाद अटलांटा में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/750228R1-ATLANTA_ND_01.mp3</mp3player>|"इसलिए मुझे जो भी थोड़ी बहुत सफलता मिली है, वह केवल इस कारण से है। मेरे गुरु महाराज ने कहा कि 'तुम जाओ और प्रचार करो जो कुछ भी तुमने अंग्रेजी भाषा में सीखा है।' बस इतना ही। इसलिए मैं इस विश्वास के साथ यहां आया, 'मेरे गुरु महाराज ने कहा। मुझे सफल होना चाहिए।' मैंने तुम्हें सोने का कोई भी बाजीगर नहीं दिखाया। मेरा सोना कहाँ है? मैं पहले चालीस रुपये लेकर आया था। (चकल्लस) तो ये वैदिक निर्देश हैं, गुरु-मुख-पद्म-वक्य, और श्री-गुरु-चरण रति, ईई से उत्ताम-गती। यही वास्तविक प्रगति है। ”|Vanisource:750228 - Conversation - Atlanta|750228 - बातचीत - अटलांटा}}
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Latest revision as of 17:04, 12 January 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
तो जो भी थोड़ी बहुत सफलता मुझे मिली है, वह केवल इसी कारण से है । मेरे गुरु महाराज ने कहा कि 'तुम जाओ और जो कुछ भी तुमने सीखा है उसका अंग्रेजी भाषा में प्रचार करो ।' बस इतना ही । तो मैं इस विश्वास के साथ यहां आया, क्योंकि मेरे गुरु महाराज ने ऐसा कहा है की मैं अवश्य सफ़ल होऊंगा ।' मैंने आपको कोई स्वर्ण बनाने की कला नहीं दिखाई । मेरे पास सोना कहाँ है ? मैं केवल चालीस रुपये लेकर यँहा आया था । (मंद हास्य) तो ये वैदिक निर्देश हैं, गुरु-मुख-पद्म-वाक्य, और श्री-गुरु-चरणे रति, एई से उत्तम-गति । यह ही वास्तविक प्रगति है ।
750228 - बातचीत - अटलांटा