HI/750228 बातचीत - श्रील प्रभुपाद अटलांटा में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७५ Category:HI/अम...") |
No edit summary |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७५]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९७५]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - अटलांटा]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - अटलांटा]] | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/750228R1-ATLANTA_ND_01.mp3</mp3player>| | <!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/750227 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मायामी में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|750227|HI/750301 बातचीत - श्रील प्रभुपाद अटलांटा में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|750301}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/750228R1-ATLANTA_ND_01.mp3</mp3player>|तो जो भी थोड़ी बहुत सफलता मुझे मिली है, वह केवल इसी कारण से है । मेरे गुरु महाराज ने कहा कि 'तुम जाओ और जो कुछ भी तुमने सीखा है उसका अंग्रेजी भाषा में प्रचार करो ।' बस इतना ही । तो मैं इस विश्वास के साथ यहां आया, क्योंकि मेरे गुरु महाराज ने ऐसा कहा है की मैं अवश्य सफ़ल होऊंगा ।' मैंने आपको कोई स्वर्ण बनाने की कला नहीं दिखाई । मेरे पास सोना कहाँ है ? मैं केवल चालीस रुपये लेकर यँहा आया था । (मंद हास्य) तो ये वैदिक निर्देश हैं, गुरु-मुख-पद्म-वाक्य, और श्री-गुरु-चरणे रति, एई से उत्तम-गति । यह ही वास्तविक प्रगति है ।|Vanisource:750228 - Conversation - Atlanta|750228 - बातचीत - अटलांटा}} |
Latest revision as of 17:04, 12 January 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
तो जो भी थोड़ी बहुत सफलता मुझे मिली है, वह केवल इसी कारण से है । मेरे गुरु महाराज ने कहा कि 'तुम जाओ और जो कुछ भी तुमने सीखा है उसका अंग्रेजी भाषा में प्रचार करो ।' बस इतना ही । तो मैं इस विश्वास के साथ यहां आया, क्योंकि मेरे गुरु महाराज ने ऐसा कहा है की मैं अवश्य सफ़ल होऊंगा ।' मैंने आपको कोई स्वर्ण बनाने की कला नहीं दिखाई । मेरे पास सोना कहाँ है ? मैं केवल चालीस रुपये लेकर यँहा आया था । (मंद हास्य) तो ये वैदिक निर्देश हैं, गुरु-मुख-पद्म-वाक्य, और श्री-गुरु-चरणे रति, एई से उत्तम-गति । यह ही वास्तविक प्रगति है । |
750228 - बातचीत - अटलांटा |