HI/750420 बातचीत - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवद-गीता में कहा गया है, स्व-कर्मणा तम अभ्यर्च्या संसिद्धि: लभते नर: (भ. गी. १८.४६)। यह एक और तरीका है, कि "मेरे पास आजीविका कमाने का कोई अन्य साधन नहीं है।" लेकिन अगर वह कृष्ण के प्रति जागरूक हो जाता है, तो भले ही वह एक विद्युत कारीगर के रूप में काम कर रहा हो, वह कृष्ण के संपर्क में है। भगवद गीता में इसकी सिफारिश की गई है, स्व-कर्मणा तम अभ्यर्च्या। यह मैंने वर्णाश्रम-धर्म में समझाया है, कि भले ही पैर पैर है, यह सिर जितना महत्वपूर्ण नहीं है। लेकिन शरीर को स्वस्थ स्थिति में रखने के लिए पैर भी आवश्यक है। ताकि विद्युत कारीगर जिसका कृष्ण से संबंध है, वह अब विद्युत कारीगर नहीं है; वह वैष्णव है, क्योंकि उसका कृष्ण के साथ रिश्ता हो गया है।"
750420 - वार्तालाप - वृंदावन