HI/750521b बातचीत - श्रील प्रभुपाद मेलबोर्न में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"प्रभुपाद: तो पिता को युवा लड़कियों को बहुत सावधानी से रखना पड़ता था। और पिता बहुत ही उत्सुक थे कि एक योग्य लड़के को वह लड़कियां सौंप दें। हमने अपने बचपन में देखा है। लेकिन अब यह सब ढीला पड गया है। जवाहरलाल नेहरू, हमारे दिवंगत प्रधान मंत्री, ने तलाक कानून पेश किया अब समाज अराजक स्थिति में है।

संचालक: यदि समाज चाहे तो आप क्या कर सकते हैं? समाज ऐसा ही चाहता है।

प्रभुपाद: समाज . . . जैसे आपका बच्चा नर्क में जाना चाहता है। लेकिन पिता का यह कर्तव्य नहीं है कि वह उसे नर्क में जाने दे। समाज चाहता है . . . क्योंकि समाज नहीं जानता, सरकार नहीं जानती कि इंसान की स्थिति को कैसे बेहतर बनाया जाए। वे इसे नहीं जानते। वे जानते हैं कि जानवर और हम एक ही हैं। वे बस नग्न घूमते हैं, और हम अच्छे पोशाक पहनते हैं, बस इतना ही। बस, सभ्यता। मैं पशु रहता हूं, लेकिन मेरी उन्नति इसलिए है क्योंकि मैं बहुत अच्छे कपड़े पहनता हूं। अब यही मानक है। लेकिन वैदिक सभ्यता ऐसा नहीं है। जानवर को चेतना में बदलाव लाना चाहिए। उसे एक इंसान के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।"

750521 - वार्तालाप - मेलबोर्न