HI/750630 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद डेन्वर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"साधव का अर्थ है संत। संत की विशेषताएं क्या हैं? इसका भी उल्लेख है:
तितिक्षवः कारुणिकाः
सुहृदं सर्व-भूतानाम
अजात-शत्रवः शांता:
साधवः साधू भूषणः
(श्री. भा. ३.२५.२१)

ये साधु के लक्षण हैं—संन्यासी जैसी पोशाक और तीन दर्जन महिलाओं के साथ वाला साधु नहीं। नहीं। साधवः, उनका काम है उपदेश देना । कृष्ण कहते हैं, अपि चेत सुदुराचारो भजते माम अनन्य-भाक साधुर एव स मंतव्य:...( भ. गी. ९.३०) वह साधु है, जो कृष्ण भावनामृत आंदोलन में लगे हुए हैं।अपि चेत सुदुराचारः। ऐसा व्यक्ति, भले ही आपको कोई दोष दिखे... क्योंकि हर कोई तुरंत संपूर्ण नहीं बन सकता। कई बार ये बुरी आदतों के शिकार हो जाते हैं। लेकिन फिर भी, अगर वह सख्ती से कृष्ण भावनाभावित हैं-वह विचलित नहीं होता है, वह कृष्ण को नहीं भूलता है-तो उसे साधु के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। कृष्ण कहते हैं। की, केवल उस योग्यता के लिए। भजते माम अनन्य-भाक। यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन की योग्यता है।"

750630 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.१७ - डेन्वर