HI/750707 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद शिकागो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो हमें यह समझ होना चाहिए कि" हम शास्त्रों से सुनते हैं कि हम शाश्वत हैं। हम प्रकृति के इन नियमों के अधीन क्यों हैं, काल? मैं मरना नहीं चाहता, मैं पीड़ित नहीं होना चाहता, मैं बूढ़ा नहीं होना चाहता, मैं बीमार नहीं होना चाहता, और ये चीजें मुझ पर थोपी गई हैं। मुझे स्वीकार करना है, और फिर भी, मैं कितना मूर्ख हूं, मैं सोच रहा हूं कि मैं स्वतंत्र हूं।" जरा देखो। इसे मूर्खता, धूर्तता कहते हैं।

तो हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन इस धूर्तता, मूर्खता को हटाने की कोशिश कर रहा है। इस आंदोलन का यही उद्देश्य है, कि "श्रीमान, आप स्वतंत्र नहीं हैं। आप पूरी तरह से भौतिक प्रकृति की चपेट में हैं, और मृत्यु के बाद, आपकी सभी स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। आप भौतिक प्रकृति के नियंत्रण में हैं, और आपको स्वीकार करना होगा , एक प्रकार का शरीर आप पर थोपा जाएगा।" कर्मणा दैव-नेत्रेन जंतुर देह उपपत्तये (श्री. भा. ०३.३१.१)। तो अगला शरीर कैसे बनता है? कर्मणा, आपकी गतिविधियों से। आप अपना अगला शरीर बना रहे हैं। आप अपने अगले शरीर के लिए जिम्मेदार हैं।"

750707 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.२३ - शिकागो