HI/750709d प्रवचन - श्रील प्रभुपाद शिकागो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन का मतलब उन्हें वास्तविक आनंद का विचार देना है। अगर

. . . तो वास्तविक आनंद का मतलब है कि जब आप इस भौतिक शरीर से दूषित नहीं हैं। आध्यात्मिक आनंद। अब हम इस शरीर के माध्यम से आनंद लेने की कोशिश कर रहे हैं। शरीर इंद्रियां हैं। इन्द्रियाणि पराण्य आहु:। शारीरिक आनंद का अर्थ है इन्द्रिय भोग। इन्द्रियाणि परण्य आहुर इन्द्रियेभ्य: परं मनः, मनसस् तु परा बुद्धि: ( भ. गी. ३.४२ ) इस तरह से हमे यह समझना है की यह शरीर असत्य है; इसलिए शारीरिक सुख भी झूठा है। यह वे नहीं समझ सकते। यह उनका दुर्भाग्य है। इसलिए जो आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत में यह नहीं समझता है कि "मैं यह शरीर नहीं हूँ। मैं शरीर से भिन्न हूँ . . . "फिर उसका आध्यात्मिक जीवन शुरू होता है। नहीं तो कुत्ते-बिल्ली और हर कोई इस शारीरिक भोग में लगा हुआ है।"

750709 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.२५ - शिकागो