HI/750720 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तान अहम द्विशत: क्रुरान क्षिपाम्य अजस्रम् अंध-योनिषु (भ. गी. १६.१९)। जो असुर हैं, राक्षस हैं, भगवान, कृष्ण के अस्तित्व को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं, कृष्ण, कृष्ण, उन्हें ऐसे परिस्थिति में डाल रहे हैं, ऐसे परिवार में, ऐसे समाज में, ऐसे समुदाय में, ऐसे देश में कि उसे कृष्ण को जानने का कोई अवसर नहीं होगा। तान अहम दविषा . . . क्योंकि वह कृष्ण से ईर्ष्या करता है, कृष्ण को भूलना चाहता है, इसलिए कृष्ण उसे ऐसे परिस्थिति में डाल रहे हैं। और जो कृष्ण को जानने के लिए थोड़ा उत्सुक है, तो कृष्ण बुद्धि दे रहे हैं।
तेषाम सतत-युक्तानाम
भजताम प्रीति-पूर्वकम
ददामि बुद्धि-योगम तम
येन माम उपयंती ते
(भ. गी. १०.१०)

वहां सब कुछ कहा गया है। तेषाम सतत-युक्तानाम। कोई भी जो चौबीसों घंटे व्यस्त रहता है . . . वह कैसे व्यस्त है? भजताम: केवल भजन के लिए। भजन का मतलब है उपासना करना, "कृष्ण की पूजा कैसे करें।" सतत-युक्तानाम, और चौबीस घंटे चिंतित, "कृष्ण की सेवा कैसे करें? कृष्ण की सेवा कैसे करें?" कृष्ण के पीछे पागल हो जाना, ऐसा व्यक्ति।"

750720 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.३९ - सैन फ्रांसिस्को