HI/750727 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैंन डीयेगो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
हम प्रकृति के नियमों पर विजय प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। यह संभव नहीं है। दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया । (भ.ग. ७.१४)। तो ये अध्ययन के विषय हैं। क्यों सभी दुखी और कुछ हद तक खुश हैं? इन गुणों के अनुसार। तो इसलिए यहाँ कहा गया है, कि "यहाँ जैसा कि हम इस जीवन में देखते हैं, जीवन की अवधि में, किस्में हैं, इसी तरह, गुणवैचित्र्यात्त, गुण की किस्मों द्वारा, गुणवैचित्र्यात्त …” तत्थान्यत्रानुमीयते। अन्यत्र का अर्थ है अगला जीवन या अगला ग्रह या अगला कुछ भी। सब कुछ नियंत्रित किया जा रहा है। त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन। (भ.ग. २.४५)। कृष्ण अर्जुन को सलाह देते हैं कि, "संपूर्ण भौतिक संसार इन तीन गुणों द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है," गुणवैचित्र्यात्त, "इसलिए तुम निस्त्रैगुण्य बनो : जहां ये तीन गुण कार्य नहीं कर सकते।" निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन ।
७५०७२७ - प्रवचन SB 06.01.46 - सैंन डीयेगो