HI/750729 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद डलास में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 17:55, 5 February 2023 by DevakiDD (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हर कोई अपने असली काम को भूल रहा है। उसका असली काम यह है कि उसे पता होना चाहिए, उसे पता होना चाहिए, कि "मैं शाश्वत हूँ । मैंने इस अस्थायी शरीर को धारण किया है और प्रकृति के नियमों के अधीन हूँ: जन्म, मृत्यु और बुढ़ापा। तो मेरी असली समस्या यह है कि कैसे फिर से शाश्वत हो जाऊं, और जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था को स्वीकार न करूं। यही मेरा वास्तविक व्यवसाय है।" लेकिन क्योंकि मैं प्रकृति के भौतिक गुणों से संक्रमित हूं, हम विभिन्न योजनाएँ बना रहे हैं। हर कोई व्यस्त है। हर कोई अपने वास्तविक व्यवसाय को भूलकर विभिन्न योजनाओं में व्यस्त है। इसे माया कहा जाता है। मा का अर्थ है "नहीं"; या का अर्थ है "यह।" इसलिए माया का अर्थ है जब आप समझते हैं, "यह मेरा काम नहीं है।"
७५०७२९ - प्रवचन SB 06.01.47 - डलास