HI/750803 बातचीत - श्रील प्रभुपाद डेट्रॉइट में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"प्रभुपाद: धन का मतलब . . .

अम्बरीष: सुख।

प्रभुपाद: (हंसते हुए) यह सभ्यता है। और पैसा मिलने के बाद-शराब पीओ और अर्ध नग्न, और नरक जाओ।" बस इतना ही। यह उनकी स्थिति है, मूढ़ा, राक्षस, यह सोचते हुए कि "मैं इस पचास साल या सौ साल इतनी विलासिता से जी रहा हूँ। यही जीवन की पूर्णता है।" क्योंकि वह नहीं जानता कि जीवन शाश्वत है, एक स्थान वह बहुत महत्वपूर्ण ले रहा है। जीवन का अर्थ, जीवन का उद्देश्य क्या है - "चिंता मत करो। उपभोग करो।" और वह आनंद क्या है? यन् मैथुनादि-गृहमेधि-सुखम (श्री. भा. ७.९.४५)। क्या यही उपभोग करना है?

750803 - वार्तालाप- डेट्रॉइट