HI/750829 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"निषिद्ध है कि, "स्त्री से एकान्त स्थान में बातें न करना, चाहे वह आपकी बेटी, आपकी माता और आपकी बहन ही क्यों न हो।" आम तौर पर माँ के साथ, बहन के साथ, बेटी के साथ यौन सम्बन्ध में उत्तेजित नहीं होता। लेकिन यह मृत्यु तक वर्जित है। अपनी बेटी को देखकर ब्रह्मा भी उत्तेजित हो गए। उदाहरण हैं। ब्रह्मा भी, और दूसरों की क्या बात करें?

तो मन इतना ग्रहणशील है कि . . . लेकिन यह मन केवल कृष्ण भावनामृत द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। योगिनाम अपि सर्वेषाम मद-गत अनंतरात्मना (भ. गी. ६.४७)। मद-गत, कृष्ण के बारे में सोच, अंतरात्मना, हृदय के भीतर । मद गत अनंतरात्मना, श्रद्धावान भजते यो माम स मे युक्ततमो मत: "वह प्रथम श्रेणी के योगी हैं।" इसलिए जब तक हम मन को नियंत्रित नहीं कर सकते, हम योगी नहीं बन सकते।"

750829 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.६२ - वृंदावन