HI/750905 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जब तक आप जीवन के निचले स्तर पर थे तब तक आपके लिए वेदों और पुराणों का मार्ग अपनाना संभव नहीं था। यह संभव नहीं था। लेकिन अब, भले ही जीवन का मानव रूप प्राप्त करते हुए, यदि आप इन्द्रियतृप्ति के लिए सोते हैं जैसे बिल्लि और कुत्ते, फिर यमदूत . . . यमदूत। कृष्ण नाम कर भाई आर सब मिचे, पलये बड़ा कथा नया यो माचे पीछे। (?) ये बहुत आसानी से समझ में आते हैं। आप कृष्ण भावनामृत से बच नहीं सकते। यह संभव नहीं है। यदि आप बचो, तो यो माचे पिछे—यमदूत आपको ले जाएगा। आप कह सकते हैं, "मैं जो चाहूं वह कर सकता हूं। तुम मुझे कृष्ण भावनाभावित बनने के लिए क्यों मजबूर कर रहे हो ? मैं जो चाहूं वो कर सकता हूं। आपके द्वारा कृष्ण भावनामृत का प्रचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं स्वतंत्र हूँ। मैं पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता।" यह धूर्तों और मूर्खों का सामान्य कथन है।"
750905 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०२.०१ - वृंदावन