HI/751008 बातचीत - श्रील प्रभुपाद डरबन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 06:04, 29 January 2021 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - update old navigation bars (prev/next) to reflect new neighboring items)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
प्रभुपाद: इंसान को ज़िम्मेदार होना चाहिए, कि 'मुझे जन्म-मृत्यु और जीवन के विभिन्न रूपों के इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने का अवसर मिला है, और भगवान को वास्तव में समझने और उसके साथ मेरा रिश्ता क्या है और तदनुसार कार्य करने का भी अवसर मिला है, ताकि में अगर भगवन को समझ लूँ तो वापस घर, परम पिता ईश्वर के घर जा सकूं। एक साधारण आदमी क्या कर सकता है? मेरा मतलब है कि कृष्ण भावनामृत आंदोलन में सिर मुंडवाना और भगवा गमछा पहनना शामिल है। एक ग्रहस्त क्या कर सकते हैं? प्रभुपाद: यह भगवा वस्त्र या बाल कटवाना बहुत जरूरी नहीं है, लेकिन यह एक अच्छा मानसिक स्तिथि बनाता है। आप समझ सकते हैं? जैसे एक सैनिक, जब वह अपने सैनिक पोषक में होता है तो उसे एक सैनिक होने का एहसास होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि अगर आप सैनिक पोषक में नहीं हैं तो आप में लड़ने की क्षमता नहीं है। यह मतलब नहीं है। तो कृष्ण भावनामृत किसी भी परिस्थिति में बिना किसी रोक के पुनर्जीवित किया जा सकता है। लेकिन ये स्थितियां मददगार हैं।
751008 - वार्तालाप - डरबन