HI/751014c प्रवचन - श्रील प्रभुपाद जोहानसबर्ग में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"कर्म आपके गुणों के साथ जुड़ने का परिणाम है। रोग की तरह, एक विशेष प्रकार की बीमारी, आपके रोग के कीटाणु का दूषित करने का परिणाम है। रोग गौण है; पहला-आपका संदूषण। तीन गुण हैं। यही भौतिक प्रकृति है। आप तमो-गुण से दूषित हो सकते हैं, तो आपको तमो-गुण का शरीर मिलेगा। यदि आप रजो-गुण से दूषित होते हैं, तो आपको रजो-गुण का शरीर मिलेगा। और यदि आप सत्त्व-गुण से दूषित या संबद्ध करते हैं, तब आपको उस तरह का शरीर मिलेगा। और यदि आप दिव्य बन जाते हैं, इन सभी गुणों से परे, तो आप अपनी मूल, आध्यात्मिक स्थिति में स्थित हो जाएंगे। यही तरीका है। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि कैसे आधार संदूषण से बचे।"
751014 - प्रवचन श्री. भा. ०१.०७.०२-४ - जोहानसबर्ग