HI/751018 सुबह की सैर - श्रील प्रभुपाद जोहानसबर्ग में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 06:04, 29 January 2021 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - update old navigation bars (prev/next) to reflect new neighboring items)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"एक बार जब आप पापी गतिविधियों को अंजाम देते हैं, गर्भ में बच्चे को मारना, 'ठीक है, अब इसे रोकें'। 'नहीं, फिर से।' तृप्यन्ति नेहा कृपणा (श्री.भा ०७.०९.४५)। वह कभी तृप्त नहीं होता है। वह जानता है कि इसके पीछे दुख है। फिर भी, वह इसे नहीं रोकेगा। इसलिए एक धीर व्यक्ति... मनुष्य को धीर बनने के लिए शिक्षित किया जाना चाहिए, कि 'मुझे इस खुजली को सहन करने दो, बस इतना ही। मैं अनेक समस्यायों से बच सकता हूं।' यह ज्ञान है। क्या यह सभ्यता है, की मनुष्य मूढ़ा और अधिक मूढ़ा, अत्यधिक मूढ़ा बने और पीड़ा भुगते? बस मनुष्य को दुष्ट-पापी बनाओ, और वे पीड़ा भुगते और आत्महत्या करें ? बस उन्हें बताएं कि उसने इस सभ्यता का निर्माण किया है जिसमे वे पीड़ित और दुष्ट-पापी हैं। बस इतना ही। जब तक आप पाप नहीं करते , तब तक आप कैसे पीड़ित होंगे? इसलिए उन्हें दुष्ट और पीड़ित रहने दें। यह प्रकृति की व्यवस्था है, कि 'तुम जीवात्मा हो, तुम कृष्ण को भूल गए हो।ठीक है, मेरे नियंत्रण में आओ। दुष्ट रहो, दुष्ट बने रहो और पीड़ा भोगते रहो। दैवी ही एशा गुणमयी मम माया (भ.गी ०८.१४) वह ऐसा क्यों कर रही है? ”कृष्ण के आगे समर्पण। अन्यथा इसी तरह आप पीड़ा भोगते रहेंगे। "यह प्रकृति का मार्ग है।"
751018 - सुबह की सैर - जोहानसबर्ग