HI/751019c सुबह की सैर - श्रील प्रभुपाद जोहानसबर्ग में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
प्रभुपाद: जो भक्त नहीं है, वह पशु है। स्व-विद्-वराहष्टृ-खरैः संस्तुतः पुरुषः पशुः (श्री. भा. २.३.१९)। एक छोटा जानवर एक बड़े जानवर की उपासना कर रहा है। बस इतना ही। जंगल में शेर की पूजा छोटे जानवरों द्वारा की जाती है। तो क्या इसका मतलब यह है कि शेर जानवर नहीं है? पुष्ट कृष्ण: वह भी जानवर है। प्रभुपाद: वह भी जानवर है। तो इसी तरह, ये सभी नेता, ये वैज्ञानिक, ये दार्शनिक, छोटे जानवरों द्वारा उनकी सराहना की जाती है, लेकिन वे भी जानवर हैं, बड़े जानवर, बस इतना ही। परीक्षा यह है कि वह आत्मा को शरीर से भिन्न समझता है या नहीं। अगर वह नहीं समझता है, तो वह जानवर है, बस इतना ही। शायद बड़ा जानवर, वो अलग बात है। बड़ा हो या छोटा, जानवर तो जानवर है। पुष्ट कृष्ण: तो जो कोई भी आत्मा के बारे में नहीं जानता . . . प्रभुपाद: वह जानवर है। बस इतना ही। स एव गोखरः। यही शास्त्र का निर्णय है। यस्यात्मा बुद्धिः कुणपे त्रि-धातुके (श्री. भा. १०. ८४.१३)।
751019 - सुबह की सैर - जोहानसबर्ग