HI/751020 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद जोहानसबर्ग में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 23:11, 4 October 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवद गीता में कहा गया है, जन्ममृत्युजराव्याधि-दु:खदोषानुदर्शनम् (भ.गी. १३.९) हम खुश रहने की कोशिश कर रहे हैं, दुखी मन से लड़ रहे हैं, लेकिन हम नहीं जानते कि हमारी वास्तविक नाखुशी यह है कि हमें मरना होगा, हमें फिर से जन्म लेना होगा, हमें रोगग्रस्त होना होगा और हमें बुढ़ापे को स्वीकार करना होगा। जन्ममृत्युजराव्याधि-दु:खदोषानुदर्शनम्, यह बुद्धिमत्ता है, कि 'मैं जीवन की सभी समस्याओं को सभ्यता, शिक्षा, वैज्ञानिक ज्ञान और बहुत सी चीजों की उन्नति द्वारा हल करने का प्रयास कर रहा हूं।' यह सब ठीक है। लेकिन दयनीय स्थिति के मेरे इन चार सिद्धांतों का क्या समाधान है: जन्म, मृत्यु, बुढ़ापे और बीमारी? और क्योंकि हम कोई समाधान नहीं कर सकते, इसलिए हमने इन चार समस्याओं को अलग रखा। हम अस्थायी समस्याओं के साथ आगे बढ़ते हैं और इसे हल करने में व्यस्त हो जाते हैं, और इस तरह हम अपने जीवन के इस मूल्यवान मानव रूप को बिल्लियों और कुत्तों की तरह बर्बाद करते हैं। यह निर्देश है। इसलिए हमें ऐसा नहीं करना चाहिए।"
751020 - प्रवचन श्री.भा. ०५.०५.०१ - जोहानसबर्ग