HI/751022 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद जोहानसबर्ग में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जब यह शरीर जारी रखने के लिए अधिक उपयोगी नहीं होता है, तो प्रकृति द्वारा एक और शरीर की पेशकश की जाती है। मृत्यु के समय, जैसा कि भगवद गीता में कहा गया है, यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् , सदा तद्भ‍ावभावित: (भ.गी. ८.६) - हम एक मानसिक स्थिति बनाते हैं। हमें दो प्रकार के शरीर मिले हैं: सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर। यह स्थूल शरीर पाँच स्थूल भौतिक तत्वों से बना है: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश और सूक्ष्म शरीर मन, बुद्धि और अहंकार से बना है। जब हम सोते हैं तो स्थूल शरीर काम नहीं करता बल्कि सूक्ष्म शरीर काम करता है। हम इसलिए सपने देखते हैं। तो ... मृत्यु के समय यह स्थूल शरीर समाप्त हो जाता है, लेकिन सूक्ष्म शरीर- मन, बुद्धि और अहंकार- मुझे दूसरे स्थूल शरीर में ले जाएगा।"
751022 - प्रवचन श्री.भा. ०५.०५.०२ - जोहानसबर्ग