HI/751103b सुबह की सैर - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"आप जो भी व्यावसायिक कर्तव्य कर रहे हैं वो कर सकते हैं . . . लेकिन आपको कृष्ण को संतुष्ट करना होगा। तब आपकी हर चीज़ सही है। और यदि आप अपनी इंद्रियों को संतुष्ट करते हैं, तो आप नरक में जा रहे हैं। यह स्थिति है। इसलिए यह है . . . स्व-कर्मणा तम् अभ्यरच्य। वह कर्म भी घृणित है, स-दोषम अपि न त्यजेत (श्री. भा. १८.४८)। आप अपना कर्तव्य करते रहें। यहां तक कि कुछ दोष भी है, कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन आप कृष्ण को संतुष्ट करें। तब यह एकदम सही है। जैसे अर्जुन ने किया। लड़ना अच्छा व्यवसाय नहीं है, लेकिन उसने कृष्ण को संतुष्ट किया। इसलिए युद्ध करके, वह एक महान भक्त बन गया-स्व-कर्मणा। उसने एक क्षत्रिय के रूप में अपना धर्म नहीं छोड़ा, एक गृहस्थ के रूप में, लेकिन वह . . . करिष्ये वचनं तव (श्री. भा. १८.७३): "हां। युद्ध में मेरी रुचि न होने के बावजूद, क्योंकि आप पूछ रहे हैं, मैं यह करूँगा।" यह कृष्ण भावनामृत है।"
751103 - सुबह की सैर - बॉम्बे