HI/751116 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"जब कोई कृष्ण को भूल जाता है और सेवा की इतनी योजनाएँ बनाता है, तो पूरी चीज़ ख़राब हो जाती है। यह चल रहा है। पूरी दुनिया में वे योजना बना रहे हैं- मानवतावाद, यह-वाद, वह-वाद, परोपकारवाद-और कोई कृष्ण-वाद नहीं। कृष्णवाद को छोड़कर। इसलिए उनकी सभी योजनाएँ विफल हो रही हैं। यही बीमारी है। इसलिए कृष्ण कहते हैं कि यदा यदा हि धर्मस्य . . . यही धर्मस्य ग्लानिर् है। हम नहीं जानते कि धर्म क्या है, और हम कृष्ण के आदेशों का उल्लंघन करते हैं। धर्मं तु साक्षाद् भगवत-प्रणितम् (श्री. भा. ६.३.१९)। धर्म का अर्थ है भगवान का आदेश। वह धर्म है। दो शब्द, धर्म की परिभाषा। धर्म की बहुत सारी परिभाषाएँ हैं धर्म, लेकिन वास्तविक धर्म, जैसा कि हम वैदिक शास्त्र से समझते हैं, धर्मं तु साक्षाद् भगवत-प्रणितम्। पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान द्वारा दिया गया आदेश, वह धर्म है। अन्यथा, अधर्म।" |
751116 - प्रवचन चै. च. मध्य २०.१०८ - बॉम्बे |