HI/751204 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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Latest revision as of 14:20, 21 September 2023

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
""जीवन का यह मानव रूप दुर्लभ है, बहुत ही कम मिलता है।" यह इतना आसान नहीं है। कई दुष्ट हैं, वे कहते हैं कि एक बार जब आप जीवन के मानव रूप में आ जाते हैं तो फिर कोई पतन नहीं होता है। वह दुष्टता है। जब कृष्ण कहते हैं कि देहिनो 'स्मिन यथा देहे कौमारम यौवनं जरा तथा देहान्तर-प्राप्तिर (भ. गी. २.१३), वह कहते हैं कि "जैसे तुमने शरीर बदला है, वैसे ही, अंत में भी तुम्हे शरीर बदलना होगा।" वह कभी नहीं कहते कि "तुम्हें फिर से मानव शरीर मिलेगा।" कभी नहीं कहते। तथा देहान्तर-प्राप्तिर: "जीवन का दूसरा रूप।" वह दूसरा रूप हो सकता है . . . 8,400,000 रूप हैं। तो "अन्य रूप" का अर्थ उनमें से किसी एक से है। इसकी कोई गारंटी नहीं है। आप यह नहीं कह सकते कि "अब मुझे मानव रूप मिल गया है . . . फिर अगले जन्म में भी मुझे मानव रूप ही मिलेगा . . . ।" नहीं।"
751204 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०६.०३ - वृंदावन