HI/751216 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७५ Category:HI/अमृत वाणी - बॉम्बे {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://vanipedia.s3.amazonaws.com/Nectar+Drops/751216LE-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"आध्यात्मिक निर्देश...")
 
(No difference)

Latest revision as of 17:07, 4 October 2023

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"आध्यात्मिक निर्देश किसी भी भौतिक स्थिति पर निर्भर नहीं करता है। किसी भी स्थिति में व्यक्ति आध्यात्मिक निर्देश को समझ सकता है। अहैतुकी अप्रतिहता येनात्मा संप्रसीदति।
सा वै पुंसाम परो धर्मो
यतो भक्तिर अधोक्षजे
अहैतुकी अप्रतिहता
येनात्मा सम्प्रसीदति
(श्री. भा. १.२.६)

वह प्रथम श्रेणी का धर्म है, स वै पुंसाम परो धर्मो। परा का अर्थ है सर्वोच्च। धर्म विभिन्न प्रकार के होते हैं, लेकिन सर्वोच्च धर्म परा धर्म है, वो है यतो भक्तिर अधोक्षजे, वह धार्मिक प्रणाली जो अनुयायियों को निर्देश देती है कि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान का उत्तम भक्त कैसे बनें। वह प्रथम श्रेणी का धर्म है। हम इस भौतिक संसार में लड़ रहे हैं। "आप हिंदू हैं," "मैं मुस्लिम हूं," "मैं सिख हूं," "मैं जैन हूं," "मैं यह हूं," "मैं वह हूं," लेकिन यह परो धर्म नहीं है; यह अपरो धर्म है। परा और अपरा, भौतिक और आध्यात्मिक की तरह ही दो गुण हैं।"

751216 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०६.०१ बिरला घर में - बॉम्बे