HI/751219 सुबह की सैर - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"प्रभुपाद: नायं देहो देहा-भाजाम नृलोकेकष्टान कामां अर्हते यद् विद-भुजाम ये (श्री. भा. ५.५.१)। यह निर्देश है। संस्कृति कहां है? संस्कृति खो गई है। इसलिए शिक्षा का कोई मूल्य नहीं है। और इसके अलावा, शिक्षा का अर्थ आध्यात्मिक शिक्षा, ब्रह्म-विद्या है। यह शिक्षा जो हवाई जहाज या एक अच्छा पुल या मशीन बनाना सिखाये, इसे कला-विद्या कहा जाता है। यह विद्या नहीं है।

डॉ. पटेल: परा और अपरा विद्या।

प्रभुपाद: नहीं, काला। कला का अर्थ है कलात्मक। मान लीजिए कि एक बढ़ई, बहुत अच्छा, अच्छा फर्नीचर बनाना जानता है, तो क्या इसका मतलब यह है कि वह शिक्षित है? वह कला जानता है, कुछ कलात्मक तरीका, बस इतना ही; लेकिन वह पढ़ा-लिखा नहीं है। लेकिन आजकल ऐसा चल रहा है कि अगर आप कोई कला, तकनीक, जानते हैं तो आप शिक्षित हैं। यह शिक्षा नहीं है। शिक्षा का अर्थ है संस्कृति।"

751219 - सुबह की सैर - बॉम्बे