HI/760102 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मद्रास में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/751128 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद दिल्ली में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|751128|HI/760105 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद नेल्लोर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|760105}}
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760102SB-MADRAS_ND_01.mp3</mp3player>|वास्तव में धर्म का अर्थ है भगवान और भगवान के साथ हमारा संबंध और उस संबंध के आधार पर कार्य करना ताकि हमें जीवन का उच्चतम लक्ष्य प्राप्त हो सके। यही धर्म है। तीन चीजें हैं संबंध, अभीदेह, प्रयोजन। सभी वेदों को तीन भागों में बाँटा गया है। संबंध - भगवान के साथ हमारा क्या रिश्ता है?इसे संबंध कहते है। और फिर अभिदेह। उस संबंध के आधार पर हमें कार्य करना चाहिए इसे अभिदेह कहते हैं। और हम कार्य क्यों करते है?क्योकि हमे जीवन का लक्ष्य  मिल मया  है कि हमे जीवन का लक्ष्य प्राप्त करना है।तो हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है?हमारे जीवन का लक्ष्य है की अपने  घर वापस जाना ,भगवद्  धाम जाना।यही जीवन का लक्ष्य है।"|Vanisource:760102 - Lecture SB 07.06.01 - Madras|760102 - प्रवचन SB 07.06.01 - मद्रास}}
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760102SB-MADRAS_ND_01.mp3</mp3player>|वास्तव में धर्म का अर्थ है भगवान और भगवान के साथ हमारा संबंध और उस संबंध के आधार पर कार्य करना ताकि हमें जीवन का उच्चतम लक्ष्य प्राप्त हो सके। यही धर्म है। तीन चीजें हैं संबंध, अभीदेह, प्रयोजन। सभी वेदों को तीन भागों में बाँटा गया है। संबंध - भगवान के साथ हमारा क्या रिश्ता है?इसे संबंध कहते है। और फिर अभिदेह। उस संबंध के आधार पर हमें कार्य करना चाहिए इसे अभिदेह कहते हैं। और हम कार्य क्यों करते है?क्योकि हमे जीवन का लक्ष्य  मिल मया  है कि हमे जीवन का लक्ष्य प्राप्त करना है।तो हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है?हमारे जीवन का लक्ष्य है की अपने  घर वापस जाना ,भगवद्  धाम जाना।यही जीवन का लक्ष्य है।"|Vanisource:760102 - Lecture SB 07.06.01 - Madras|760102 - प्रवचन SB 07.06.01 - मद्रास}}

Revision as of 23:22, 20 June 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
वास्तव में धर्म का अर्थ है भगवान और भगवान के साथ हमारा संबंध और उस संबंध के आधार पर कार्य करना ताकि हमें जीवन का उच्चतम लक्ष्य प्राप्त हो सके। यही धर्म है। तीन चीजें हैं संबंध, अभीदेह, प्रयोजन। सभी वेदों को तीन भागों में बाँटा गया है। संबंध - भगवान के साथ हमारा क्या रिश्ता है?इसे संबंध कहते है। और फिर अभिदेह। उस संबंध के आधार पर हमें कार्य करना चाहिए इसे अभिदेह कहते हैं। और हम कार्य क्यों करते है?क्योकि हमे जीवन का लक्ष्य मिल मया है कि हमे जीवन का लक्ष्य प्राप्त करना है।तो हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है?हमारे जीवन का लक्ष्य है की अपने घर वापस जाना ,भगवद् धाम जाना।यही जीवन का लक्ष्य है।"
760102 - प्रवचन SB 07.06.01 - मद्रास