HI/760508 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद होनोलूलू में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760508SB-HONOLULU_ND_01.mp3</mp3player>|"इस भूलोक के ऊपर भूर्लोक, भुवर्लोक, जनलोका, तपोलोका, महरलोक है। इतनी सारी ग्रह व्यवस्थाएँ हैं। और नीचे भी उसी तरह, तला, अतला, वितला, पाताला, तलातल, है। यदि आप नीचे जाना चाहते हैं, तो आप नीचे जा सकते हैं। अगर आप ऊपर जाना चाहते हैं, तो आप जा सकते हैं। ऊर्ध्वं गच्छांति सत्त्व...([[Vanisource:BG 14.18 (1972)|भ.गी. १४.१८]]) सब कुछ है; आप कर सकते हैं। सामान्यतः कोई भी समझ सकता है की अगर आप मानव समाज में यदि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनना चाहते हैं, तो आप बन सकते हैं। और यदि आप जेलखाने में अपराधी बनना चाहते हैं, तो आप बन सकते हैं। सब कुछ खुला है। सरकार यह नहीं कहती है कि आप अपराधी बन जाएं और वह किसी को प्रधानता देती है, 'आप एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बन जाएं...' नहीं। सब कुछ आपके हाथ में है। यदि आप चाहें, तो आप ऐसा बन सकते हैं। इसी तरह, यदि आप चाहें, तो आप घर, भागवत धाम वापस जा सकते हैं। यह जीवन की पूर्णता है। और अगर आप नहीं चाहते हैं, तो यहीं रहिये। अतः कृष्ण कहते हैं, अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्यु-संसार-वर्त्तमनी ([[Vanisource:BG 9.3 (1972)|भ.गी. ०९.०३]])। कृष्ण आपके पास आये हैं आपको उच्चित निर्देश देने के लिए कि आप कैसे वापस भागवत धाम जा सकते है।   वापस भागवत धाम। वह कृष्ण का ध्येय है।"|Vanisource:760508 - Lecture SB 06.01.07 - Honolulu|760508 - प्रवचन SB 06.01.07 - होनोलूलू}}
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Latest revision as of 17:52, 17 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"इस भूलोक के ऊपर भूर्लोक, भुवर्लोक, जनलोका, तपोलोका, महरलोक है। इतनी सारी ग्रह व्यवस्थाएँ हैं। और नीचे भी उसी तरह, तला, अतला, वितला, पाताला, तलातल, है। यदि आप नीचे जाना चाहते हैं, तो आप नीचे जा सकते हैं। अगर आप ऊपर जाना चाहते हैं, तो आप जा सकते हैं। ऊर्ध्वं गच्छांति सत्त्व...(भ.गी. १४.१८) सब कुछ है; आप कर सकते हैं। सामान्यतः कोई भी समझ सकता है की अगर आप मानव समाज में यदि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनना चाहते हैं, तो आप बन सकते हैं। और यदि आप जेलखाने में अपराधी बनना चाहते हैं, तो आप बन सकते हैं। सब कुछ खुला है। सरकार यह नहीं कहती है कि आप अपराधी बन जाएं और वह किसी को प्रधानता देती है, 'आप एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बन जाएं...' नहीं। सब कुछ आपके हाथ में है। यदि आप चाहें, तो आप ऐसा बन सकते हैं। इसी तरह, यदि आप चाहें, तो आप घर, भागवत धाम वापस जा सकते हैं। यह जीवन की पूर्णता है। और अगर आप नहीं चाहते हैं, तो यहीं रहिये। अतः कृष्ण कहते हैं, अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्यु-संसार-वर्त्तमनी (भ.गी. ०९.०३)। कृष्ण आपके पास आये हैं आपको उच्चित निर्देश देने के लिए कि आप कैसे वापस भागवत धाम जा सकते है। वापस भागवत धाम। वह कृष्ण का ध्येय है।"
760508 - प्रवचन श्री.भा. ०६.०१.०७ - होनोलूलू